हे अमिट जीव!
हे अमिट जीव तुमको प्रणाम! इन झंझावातों से लड़ता, हूं प्रतिक्षण जब कण कण मरता, निष्फल होते हैं जब प्रयास गिरता हूं जब जब अनायास जब नहीं आस एक टिकती है बस घोर निराशा दिखती है होता है मस्तक झुका हुआ लगता है जीवन रुका हुआ तब भी छोटी सी चिंगारी जो चीर निशा ये अंधियारी फिर फिर कहती है बढ़ने को और खुद से खुद ही लड़ने को जो रखती मुझको अविराम हे अमिट जीव तुमको प्रणाम! -उदय