माउथॉरगन

माउथॉरगन 

कान्हा जोशी उदय 



" छोड़ यार! अब ये सब पुरानी बात है..." शाश्वत ऊँगली से सिगरेट की राख ज़मीन पर गिराते हुए बोला। "सुन भाई! अब ना मुझमें वो आवाज़ बची है और न ही फिर से शुरुआत करने की हिम्मत! और तू मुझे ये बार-बार बोलकर परेशान मत किया कर...।"  बोलकर  शाश्वत ने झल्लाते हुए फ़ोन काट दिया। टपरी वाले को सिगरेट और चाय के पैसे दिए, बिखरे कालर और बालों को ठीक किया और अपनी गर्दन से बेतरतीब लटक रहे आईडी कार्ड को सीधा कर ऑफिस की ओर बढ़ गया। बिल्डिंग में घुसते ही उसकी नज़र ठीक उसी के जैसे दिख रहे लोगों पर पड़ी, ठीक उसी के तरह कपड़े, वही बातचीत का ढंग और सभी के माथे पर दिख रही वक़्त की कमी की साझी परेशानी.... उसने आगे बढ़कर  लिफ्ट की ओर क़दम बढ़ाया, और लिफ्ट के घिसे हुए बटनों में से एक दबाकर लिफ्ट की दीवार के सहारे  खड़ा हो गया।  

लिफ्ट रुकी...और जैसे ही शाश्वत मुरझाई हुई आँखों से बाहर आया तो उसे बगल से गुज़रती एक आवाज़ सुनाई दी..."ओहो शाश्वत! मंडे को चेहरे पर इतनी उदासी रखोगे तो पूरा हफ्ता कैसे कटेगा?" ये आवाज़ शाश्वत पहचानता था, ऑफिस के इस ऊबाऊ माहौल में यही आवाज़ की चहक उसे ज़िंदा रखती थी...वैसे तो कोई उस पर ऐसी मज़ाक करे, उसे बिलकुल पसंद नहीं था; पर न जाने क्यों साक्षी के ये राह चलते ताने उसे नाराज़ नहीं करते थे, उसे पता भी नहीं चलता और हर बार उसके चेहरे पर एक लम्बी मुस्कराहट भर जाती। 

शाश्वत चाहता था कि वो साक्षी की इस बात का कुछ  इंटेलीजेंट जवाब दे सके, उसे याद था कि साक्षी ने एक बार लंच करते हुए शाहरुख खान की जर्नलिस्ट्स  को दिए गए जवाबों वाली एक वीडिओ दिखाई थी उसे।  "मुझे बस इन्हीं बातों की समझदारी के लिए SRK बेहद पसंद है शाश्वत, इतने पेंचीदा सवालों को इतनी आसानी से इतना फनी कैसे बना सकता है यार कोई इंसान?....." बस....उस दिन वापस फ्लैट पर लौटकर शाहरुख़ की हाज़िरजवाबी की सारी वीडियोस देख डाली थी शाश्वत ने! अपने पसंदीदा इंसान को इम्प्रेस करने की कोशिश का दौर भी बड़ा बेवकूफाना होता है न!  इंसान हर कोशिश करता है कि किसी के ख़्यालों में  बस थोड़ी सी जगह बना सके....!

इससे पहले कि शाश्वत अपने दिमाग में ज़ोर डालकर एक ख़ूबसूरत जवाब निकाल पाता, साक्षी मुस्कुराते हुए धीरे-धीरे उसकी नज़रों से ओझल हो गयी।  कुछ देर दरवाज़े को ताकते हुए जवाब देने की जद्दोजहद करने के बाद हारकर शाश्वत अपने केबिन पर बैठ गया।   सामने डेस्क पर रखा लैपटॉप अपनी ओर किया और स्क्रीन पर आँखें गड़ाकर काम करने लगा। बहुत काम करना है उसे, दो प्रोजेक्ट्स एक साथ संभाल रहा है , और क्लाइंट्स भी इतने अजीब कि कोई बात आसानी  से समझ ही नहीं पाते।  तब  शाश्वत सोचता है कि शायद कमी उसी में है....वही तो रख नहीं पाता अपनी बात किसी के सामने....न क्लाइंट्स के सामने, न साक्षी के सामने  और न ही अपने घर वालों के सामने....। 

उसकी आँखों में वो वक़्त तैरने लगा जब बचपन में वो पिताजी की जेब से पैसे निकालकर एक माउथॉरगन खरीद लाया था।   कई दिन वो पेट दर्द का बहाना बनाकर घर में अकेले रुकता, और मम्मी पापा के जाने के बाद सीखने की कोशिश करता....फिर शाम  को गेट खुलने की आवाज़ सुनकर भागते हुए  बिस्तर के नीचे पापा के आर्मी वाले पुराने संदूक में उसे सहेज कर रख देता। छुपाना ज़रूरी था...क्योंकि एक तो शाश्वत ने चोरी की थी और वो भी  माउथॉरगन के लिए...पापा की  नज़रों में चोरी करना 'अनएथिकल' था और  म्यूज़िक समय की बर्बादी...जब दिवाली में संदूक की सफाई हुई, उस दिन पापा ने बहुत  मारा था उसे! रोते हुए, पापा को सब बताना चाहा उसने, पर जैसे उस मार ने एक दीवार की नींव रख दी उस दिन उन दोनों के बीच...जो बढ़ते वक़्त के साथ ईंट दर ईंट बस बढ़ती  रही...।  

तभी बगल के केबिन में बैठे सचिन की मोबाइल की घंटी बजी, शाश्वत के मन ने उसे बचपन की धुंधली यादों से सीधा उसकी ऑफिस डेस्क पर ला पटका। शाश्वत ने अपना  चश्मा आँखों से उतारकर साफ़ किया और उसकी ओर देख रहे सचिन को एक पिटी हुई मुस्कान देकर वापस काम में लग गया। 

शाम हुई...शाश्वत ने अपनी सीट से उचककर देखा - साक्षी कॉफ़ी मशीन के पास  फ़ोन पर बात कर रही थी, सनसेट की गुनगुनी धूप की सुनहरी चमक उसके सफ़ेद कुर्ते पर पड़ रही थी।  बार-बार पंखे की हवा साक्षी के ढीले बंधे बालों को फुसलाकर उसके गालों  तक ले जाती, और उसकी उँगलियाँ उनको डांट डपटकर मानो कानों के पीछे वापस बैठा आती... साक्षी की खूबसूरती और उसे देखते हुए पकड़े जाने का डर धीमे-धीमे उसकी धड़कन बढ़ा रहा था। शाश्वत ने फिर सोचा कि आज वो साक्षी को फाइल्स देते हुए  साथ में वापस चलने के लिए बोलेगा। 

शाश्वत ने काम ख़त्म किया और फूर्ति के साथ दौड़ते क़दमों से साक्षी की डेस्क पर गया।  देखा तो पाया, साक्षी जा चुकी थी... डेस्क पर कुछ  फाइलें थी, कुछ नोट्स थे...और डेस्क के कोने में थी एक छोटी सी शायरी की किताब। शाश्वत ने हताश होकर किताब का एक पन्ना खोला और एक शेर बेतरतीब ढंग से रुक-रुक कर पढ़ने लगा...... "ज़िन्दगी...तूने मुझे.. कब्र से कम..दी है ज़मीन, पाँव फैलाऊं  तो.. दीवार में ...सर लगता है.....बशीर बद्र ......" 

शाश्वत बेमन से वापस अपने डेस्क पर आया और फाइलें अपनी टेबल के दराज़ में डालकर घर के लिए अकेले निकल गया।  शाम का आखिरी पहर रात के अँधेरे को न्यौता  दे रहा था।  शाश्वत ऑटो से बाहर की ओर देखने लगा - ऐसा लग रहा था जैसे पूरा शहर दिन भर की मेहनत के बाद थक गया हो...आसमान, हवा, सूरज, सारे लोग, ये ऑटो वाले भैया और वो खुद... कमरे में वापस आकर जैसे शाश्वत के शरीर में बिल्कुल जान नहीं बची।  उसने कपड़े बदले, किचन में जाकर सुबह की बची सब्ज़ी गर्म की और खाकर  बिस्तर में फोन चलाते हुए  लेट गया.... 

सुबह रोज़ की तरह उठकर शाश्वत ऑफिस की ओर भागा, वक़्त की कमी को भांपते हुए उसने क़दमों को पहले थोड़ा और फिर बहुत तेज़ कर लिया। जैसे ही अपने ऑफिस  फ्लोर पर पहुंचा  तो देखा कि उसकी डेस्क के पास कुछ लोगों की भीड़ जमा थी....रोहन,श्वेता, राहुल, सचिन, बॉस और.....और साक्षी भी! थोड़ा  सहमते हुए वो आगे बढ़ा...तभी साक्षी की नज़र उस पर पड़ी.... "ये लो आ गए महाशय! तुम तो बड़े छुपे रुस्तम निकले यार! यहाँ पार्टीज़ में हमें रोहन का बेसुरा गाना  सुनना  पड़ता है और तुम अपने टैलेंट को  दराज़ में छुपाकर बैठे हो" साक्षी अपने  हाथ में रखे माउथॉरगन की ओर इशारा  करते हुए बोली। बॉस ने साक्षी की तरफ माउथॉरगन शाश्वत की ओर पकड़वाने का इशारा किया और कहा "...वो तो अच्छा हुआ फाइलें दराज़ में ढूंढते हुए ये मिल गया वरना हमारा ऑफिस का मोज़ार्ट अनसुना रह जाता, चलो भई...आज दिन की शुरुआत तुम्हारे ही साज़ से करते हैं...स्टार्टिंग ऑन अ म्यूजिकल नोट...."

शाश्वत को कभी इतने अटेंशन की आदत नहीं थी, पर किसी चीज़ के लिए मना कर पाना उसके लिए और भी कठिन था।  इसी उहापोह में उसने कांपते हुए माउथॉरगन हाथों में ले लिया जिसके बाहर का नीला रंग आधे से ज़्यादा मिट चुका था और उसकी जगह धूल की एक मोटी परत ने ले ली थी।  धूल झाड़ते हुए उसने माउथॉरगन अपने होंठों से लगाया और पहली फूंक भरी...

धूल फंस जाने की वजह से आवाज़ साफ़ नहीं थी, लेकिन शाश्वत उन लड़खड़ाते सुरों को संभालने की कोशिश करने लगा...अपनी अधखुली आँखों से उसे सामने खड़े लोगों के चेहरे की धीमी निराशा दिखने लगी।  शाश्वत ने आखिरकार अपनी आँखें मूँद ली और माउथॉरगन में फंसे धूल के कणों के बीच से सुरों को बचा-बचाकर निकालने में मशगूल हो गया।

अंत में एक सही सुर माउथॉरगन से निकला, शाश्वत ने अपने हाथों की पकड़ मज़बूत कर ली, ऐसे लगा माउथॉरगन ने शाश्वत को थाम लिया हो।  धीरे-धीरे अलग-अलग निकल रहे सुर एक धुन का रूप लेने लगे और एक छोटा सा साज़ पूरे बैंड की सिम्फनी का.... ऑफिस का माहौल पूरा थम गया और शाश्वत के लिए सब कुछ धीमा हो गया... शाश्वत की बंद आँखों के आगे कई अतरंगी चित्र आने लगे....

...छोटा शाश्वत मम्मी पापा के आने पर माउथॉरगन बजाते हुए ख़ुशी से दरवाज़ा खोल रहा है और पापा उसके बालों पर हाथ फेरकर उसे हंसकर गोदी में उठा रहे हैं...उसे नज़र आया कि वो शाहरुख़ की तरह हाज़िरजवाबी से सबको जवाब दे रहा है और साक्षी उसे बिना आँखें मूँदे निहार रही है...पूरे शहर की शाम जागी हुई है और वो साक्षी के साथ घर की तरफ हाथ पकड़कर साथ जा रहा है...और ज़िन्दगी में कुछ भी बेसुरा नहीं है ...सब कुछ है - एकदम लयबद्ध!

...तभी सचिन का फोन बजा, पुराने माउथॉरगन की धुन के आगे सबको महंगे आई-फोन की रिंगटोन बेसुरी लगने लगी, शाश्वत के मन ने उसको  कल्पनाओं से वापस बुला सहेजकर ऑफिस की डेस्क पर बिठा दिया! शाश्वत ने धीमे से आँखें खोली- ठीक एक नवजात शिशु की तरह...और देखे - सामने बैठे मंत्रमुग्ध चेहरे जो  संख्या में पहले से ज़्यादा लग रहे थे...पहले तो सब कुछ एकदम शांत था फिर शुरूआती एक दो तालियों के बाद पूरा कमरा तालियों और तारीफों से गूंजने लगा...शाश्वत ने गहरी सांस ली और माउथॉरगन अपनी कमीज़ की बांयी जेब में रखकर दराज़ बंद कर दिया......। 

 







Comments

  1. अपने पसंदीदा इंसान को इम्प्रेस करने की कोशिश का दौर भी बड़ा बेवकूफाना होता है न! ~ मानीखेज सूत्र वाक्य और सहजता, जीवंत लेखन वरेण्य है ; शानदार, जय हो 🙏

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  2. Beautiful story and depiction that makes you feel good after reading it. Simple but very effective!! Loved it.

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  3. अच्छी कहानी है

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  4. Bahut khoobsurat likha hai apne 🥹

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  5. Bahut badiya bhai 👍

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  6. This story is beautifully written and straight away points to the life that we spend, everyone in the world is running behind achieving some goals which are not even theirs and thus end up losing interest in life and it's beauty. The author also points to enjoy life by working on something which describes you, and makes you just feel the extreme happiness. Like Shashwat gets involved in playing mouth organ so much so that he forgets where he is and just gets engrossed in enjoying that very moment
    This reminds me the dialogue from Dead Poets Society,
    "Engineering, Medicine, etc is the work which is required to sustain life, but poem, music, arts, acting, dancing, singing, love is what we live for"

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  7. जिस तरह शाश्वत माउथ ऑर्गन बजाने में मशगूल हो गया था ठीक उसी प्रकार हम भी आपकी कहानी पढ़ने में मग्न हो गए ।
    अदभुत लेखन 🙏🏻

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