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अनुत्तरित

मेरी वास्तविकता मेरे शब्दों से दूर है! मेरा दुःख ये है कि मैं अपनी रचनाओं को नहीं जी पाता!  ये शायद इसीलिए कि एक मुखौटा ओढ़कर भीतर से खेद की अग्नि में जलते रहने के लिए किसी वीरता की आवश्यकता नहीं है किन्तु समाज की धारा के विपरीत अपने मूल्यों और वास्तविक व्यक्तित्व को जीने के संघर्ष में उतरने के लिए अनंत कठिनाईयों को प्रसन्नता से जी सकने का धैर्य और पराक्रम चाहिए! कभी कभी सोचता हूँ कि व्यक्तित्व की परिभाषा क्या है? क्या समाज में स्वीकार्य होने के लिए मेरी तरफ से किये जा रहे अनैच्छिक प्रयास मेरा वास्तविक व्यक्तित्व हैं या फिर रचनाओं को लिखते समय मेरे मन में उठने वाला अंतर्द्वन्द्व और अपने मूल्यों से मेरे वास्तविक कर्मों की दूरी से उत्पन्न असहनीय झुंझलाहट? मैं सदैव स्वयं को वर्तमान समाज की परिपाटी से कटा हुआ पाता हूँ| बंद कमरों में गर्मी से बचने के लिए एसी की कृत्रिम हवा को आराम समझने की बजाय पेड़ की छाँव में वायु के स्पर्श से अधिक सहज महसूस करता हूँ! जीवन की तेज़ी, ऊंची इमारतें और तेज़ भागती लम्बी गाड़ियां मुझे आकर्षित नहीं करती; मेरे परिचितों की दृष्टि में ये काफी अवास्तविक और असंभव