यहीं तो है
यहीं तो है... इस कमरे के ठीक बाहर, मेरे सुकून की तासीर... घाटियों की हवा, ठंडे सोते का पानी, और बरगद की सी छांव लिए! खुशबू तो जैसे... आम का पहला बौर! और स्पर्श.... ठीक मरू पर टपकती बारिश की बूंदों सा! पर कैद हूं... दरवाज़े पर खड़ा वक़्त का रिज़वान, जाने नहीं देता!