फिसलती रेत

फिसलती रेत के साथ,
छीन लिए जाते हैं बेबाक ठहाके,
रोक दी जाती हैं बेपरवाह दौड़ें,
और रोने की आज़ादी भी....
सब कुछ एक सलीके से,
...जिसे तुम तय नहीं करते!
ठीक वैसे ही,
जैसे गूंथी जाती है मिट्टी!
रखी जाती है पुराने चाक पर,
और जिसे घुमाकर 'उन' तरीकों से,
बन जाते हैं एक से बर्तन...
फिर लग जाती है  कतार,
सब बिकने को तैयार...
लेकिन अफसोस!
..मिट्टी, मिट्टी नहीं रहती!


-uday






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