रोटी
रोटी - कान्हा जोशी 'उदय' ढोलक और चम्मच लिए, शोर से लड़ता बचपन, गा रहा है... नाचती धुनों में छिपी, अपनी एलिगी... आँखें मीचे, जिस्म ताने, खींच रहा है सुर, जैसे बुला रहा हो चीख-चीखकर... एक लोथा, एक कौर, ....और एक छत! बर्फ है या आग? कभी चिल्लाता मदहोश, तो अभी साकिन,चुपचाप... ...ताकता है दुनिया, या शायद देखता हो... फंदे से लटके मोज़ार्ट, हथकटे पिकासो, और गूंगे तानसेन! गाड़ी थमी है... उसे चलना है... नन्हे हाथों में सिक्कों का बोझ लिए! क्योकि...आज़ाद करानी है उसे, ढोलक और गीतों में कैद, ..... उसकी अपनी रोटी