Posts

Showing posts from July, 2020

रोटी

रोटी            - कान्हा जोशी 'उदय' ढोलक और चम्मच लिए,  शोर से लड़ता बचपन, गा रहा है... नाचती धुनों में छिपी, अपनी एलिगी... आँखें मीचे, जिस्म ताने,  खींच रहा है सुर, जैसे बुला रहा हो  चीख-चीखकर... एक लोथा, एक कौर,  ....और एक छत! बर्फ है या आग? कभी चिल्लाता मदहोश, तो अभी साकिन,चुपचाप... ...ताकता है दुनिया, या शायद देखता हो... फंदे से लटके मोज़ार्ट, हथकटे पिकासो, और गूंगे तानसेन! गाड़ी थमी है... उसे चलना है... नन्हे हाथों में सिक्कों का बोझ लिए! क्योकि...आज़ाद करानी है उसे, ढोलक और गीतों में कैद,  .....  उसकी अपनी रोटी   

चश्मा

Image
उसने रोशनी के बीच रातों को पिया होगा, वो अगर ऐसे जिया तो क्या जिया होगा? आज उसकी शक्ल पर ज़्यादा हंसी है जो, कल उसी ने दर्द कुछ ज़्यादा लिया होगा। अब तुझे दुनियां में बस एक रंग दिखता है, तेरी भी आंखों में चश्मा सिल दिया होगा। - उदय

उपेक्षित खामोशी

      नमस्कार मित्रों! कुछ ही समय पूर्व हम उन दिनों से दो-दो हाथ करके आए हैं जिन दिनों में एक विद्यार्थी को अनायास ही 'वक्त की कीमत' महसूस होने लगती है..जी हाँ! सही समझे आप, परीक्षा के दिनों से...परीक्षाओं की समय-सारिणी आने के साथ ही 'दिलों की घबराहट' और 'नोट्स की फोटोकॉपी कराने' का सिलसिला शुरू हो गया..जैसे-जैसे दिन करीब आने लगे छात्रों के मुख से 'आध्यात्म' और 'भगवान के प्रति अगाध श्रद्धा' के प्रवचन सुनाई देने लगे...'बड़ी मार्केट' के दुकानदारों की धूप-बत्ती की बिक्री बढ़ने लगी..और शुरू हुआ एक महत्वपूर्ण दौर..परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए आवश्यक अंकों की गणनाओं का दौर..परीक्षा काल में तो विद्यार्थियों की स्थिति अत्यन्त दुर्दमनीय थी...छात्रावास के गलियारों में छात्र किताबें लेकर ऐसे दिखाई देते जैसे दो दिन से लगातार सफर कर रहा यात्री बस स्टेशन पर शौचालय ढूँढ रहा हो...      आखिरकार परीक्षाएँ समाप्त हुई...आधे खाली हुए 'अगरबत्तियों के पैकेट' और 'फोटोकॉपी कराए गए नोट्स' कमरे के बाहर फेंके जाने लगे...और अब छात्र एक दूसरे के कं