गुज़रता वक़्त, बदलती दुनियां

लोगों के बदले नक़ाब,
किरदार अभी भी वैसा है,
खुल गयी दुकानें मरहम की;
बाज़ार अभी भी वैसा है | 

तुम से कुछ है तो अपने हो,
कुछ नहीं तो फिर तुम गैर सही,
बस मोल बदलता रहता है;
व्यापार अभी भी वैसा है |

हैं दिए वही, हैं रंग वही,
और वैसे ही हम तुम भी हैं,
बस खुशियाँ थोड़ी कम सी हैं;
त्यौहार अभी भी वैसा है | 

कुछ फ़र्क नहीं है अब भी इन,
हर पल बढती सी चोटों में,
बस सह कुछ ज्यादा लेता हूँ,
पर वार अभी भी वैसा है |

पूछ रहे हैं लोग रोज़,
 कि कैसे हैं हालात मेरे,
बस खबर बदलती रहती है,
अखबार अभी भी वैसा है |

मैं तो अब भी उन हंसी ठहाको,
की यादों को गिनता हूँ,
अब महफिल कम ही जमती है;
दरबार अभी भी वैसा है |

-कान्हा जोशी 'उदय'


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