समंदर

गोते लगाकर ही है मुमकिन जानना इसको,
हाँ इस समंदर में छिपे कुछ राज़ गहरे हैं,
और भाप न हो जायें तुम जल्दी समझ लेना;
मुझमें ओस की बूँदों से ये कुछ भाव ठहरे हैं।
आँखें खुली मेरी तो प्यादों से घिरा पाया,
मियां ये ज़िन्दगी शतरंज, हम अदने से मोहरे हैं,
और अब खुदा रहता नहीं मंदिर मज़ारों में,
वहाँ बस पत्थरों पर आज इंसानों के पहरे हैं।
सबकी तरह मर जाओगे बस चीख कर तुम भी,
तुम्हारे दर्द सुनने को यहाँ सब लोग बहरे हैं,
तुम ही बताओ तुम को मैं पहचान लूँ कैसे?
यहाँ लोगों के चेहरे हैं, फिर उन चेहरों पे चेहरे हैं।

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