डायरी का आखिरी पेज

डायरी का आखिरी पेज  (diary ka akhiri page)

                - कान्हा जोशी 'उदय' 

आज पलट रहा था पुरानी डायरी के कुछ पन्ने
कई नज़्में मिली इतराती हुई
कुछ में लोग थे, ये ज़माना था
कुछ में  कुछ नहीं था
बस अफ़साना था
कुछ में नौसीखिए शायर की ज़ुबाँ बासी थी
कुछ में नए लफ्ज़ पिरोये थे अच्छी नक्काशी थी
कुछ मंचों में पढ़ते पढ़ते पुरानी हो गयी थी
कुछ बर्फ सी सख़्त कुछ पानी हो गयी थी
पर डायरी के आखिरी पेज पर
कुछ आधी अधूरी, टूटी फूटी लाइनें मिलीं
जो न तो थी दिखाने के काम की
न ही महफ़िलों में सुनाने के काम की
कुछ पन्नों को तो हिस्सों में बाँट दिया था
कुछ लाइनों को लिखकर बस काट दिया था
कुछ अच्छी बनी नहीं उनसे रूठ गया
कुछ को बुनते बुनते शायद मैं खुद ही टूट गया
पर सच कहूँ,
जो ये अनकही खामोशी ढेर सारी है
ये अधूरी बातें, पूरी नज़्मों पर भारी हैं
एक यही अधूरापन है खुद को पाने के लिए
बाकि सब तो है बस दुनिया को सुनाने के लिए
ये न नज़्म हैं, न ग़ज़लें हैं, न कविता, न शायरी
हाँ, पर इनके बिना कुछ अधूरी है डायरी...







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