एक्वेरियम

देख रहा हूं...
घर के एक  कोने में रखा हुआ एक्वेरियम,
जिसमें मशरूफ हैं तरह - तरह की मछलियां,
चंद दानों की आस में,
अपने सुकून की तलाश में...
कुछ बड़ी, कुछ छोटी,
कुछ ताक़तवर, कुछ कमज़ोर...
जो तैर रहीं हैं...
बेपरवाह दिन रात से,
और  बेखबर इस बात से;
कि जो उनकी आंखों में छाई हुई है,
वो दुनिया किसी और की बनाई हुई है!
तभी लगता है कि कहीं ऐसा न हो,
कि ये दुनियां भी हो,
किसी के घर के एक कोने में रखा हुआ एक्वेरियम,
जिसमें मशरूफ हैं तरह - तरह की ज़िंदा ज़ातें,
चंद खुशियों की आस में,
अपने सुकून की तलाश में...
कुछ अमीर, कुछ गरीब,
कुछ ताक़तवर, कुछ कमज़ोर...
जो भाग रहे हैं...
बेपरवाह दिन रात से,
और  बेखबर इस बात से;
कि जो उनकी आंखों में छाई हुई है,
वो दुनिया किसी और की बनाई हुई है..….
-कान्हा जोशी 'उदय'

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