घर
घर
- कान्हा जोशी 'उदय'
शोर को लोरी समझकर,
ख़्वाब जब से सो गया है,
इस शहर के बीच उसका,
घर कहीं गुम हो गया है!
उससे ज़माने ने कहा,
अपना नजरिया छोड़ दे,
हां वो अंधा तो नहीं है,
उसका चश्मा खो गया है!
इस शहर के बीच उसका,
घर कहीं गुम हो गया है!
शोर को लोरी समझकर,
ख़्वाब जब से सो गया है,
इस शहर के बीच उसका,
घर कहीं गुम हो गया है!
उससे ज़माने ने कहा,
अपना नजरिया छोड़ दे,
हां वो अंधा तो नहीं है,
उसका चश्मा खो गया है!
इस शहर के बीच उसका,
घर कहीं गुम हो गया है!
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