रूमी से दो बात

कहो रूमी!
सच्चाई और झूठ के परे,
मैदान की तलाश,
पूरी हुई क्या तुम्हारी?

जवाब दो...
कि मिल सका क्या वो शहर?
जिसमें बैठे थे तुम सजाए,
...मिलने का स्वप्न!
कि जिसमें तुम और तुम्हारी प्रेमिका,
रहते हर 'दुनियापन' के परे 
केवल तुम्हारे चश्मे से दिखती,
...अच्छाई के महल में बेपरेशां!

नहीं मिला होगा शायद...
क्योंकि ये दुनियां परे नहीं है,
सच्चाई और झूठ के!
मसलन...साथ है इनके!
मिश्रित और अविभक्त...
कि इसमें घुला हुआ है सब,
ठीक इन रंगों की तरह...
काला या सफ़ेद नहीं,
...सब कुछ सलेटी

तो अब कहो रूमी!
सच्चाई और झूठ के 'साथ',
मैदान की तलाश,
पूरी हुई क्या तुम्हारी?

-uday



 



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