शब्द
शब्द...नहीं शब्द!
प्रतिबिंब हैं!
खुद में शून्य,
...पर देखते हैं;
आंखों के रास्ते,
परछाई अंतर्मन की...।
शब्द...नहीं शब्द!
महाकाव्य है!
अनंत सर्गों का,
...आ चेतना में,
सुनाता है अनवरत,
एक शब्द में छिपी,
कई कथाएं...।
शब्द...नहीं शब्द!
शरीर हैं!
तुमसे मिलकर तुम्हारे,
मुझसे मिलकर मेरे!
...मिटते नहीं
साथ रहते हैं धमनियों में,
अमिट...जीवनपर्यंत...!
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