ख़्वाब
ख़्वाब तो कई आते हैं,
पर अकसर नहीं रह पाते याद!
लेकिन कभी...
बांज की जड़ों में रुके पानी से साफ,
...रह जाते हैं क़ैद!
ख़्वाब में दास्तानें हैं कई,
कभी बिखरे हुए मडूए के दानों सी,
तो कभी गेहूं की बालियों सी एक साथ!
कभी धाराओं के ठंडे पानी सी तेज़,
तो कभी ताल के पानी की तरह स्थिर!
पर बेतरतीब हों या जुड़े हुए,
सभी हैं खूबसूरत!
जिनका जी लेता हूं हर क्षण,
तुम्हारे साथ...
फिर सुबह उठकर,
मुस्कुराकर,
सोचता हूं अकसर,
कि शायद ज़रूरी हों दोनों,
जागने के लिए सपने देखना,
और जागना, सपने देखने की खातिर!
-उदय
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