प्रवाह

प्रवाह 

- कान्हा जोशी उदय 

मुट्ठियों में भींचकर हम,
रोकना चाहें अगर कुछ,
....रुक नहीं पाता कभी!

रुक नहीं पाता समय,
....जो है निरंतर;
रुक नहीं पाते...
कोई संबंध भी तो!
रेत सा रस्ता बनाकर हैं फिसलते,
हारते हैं मुट्ठियों के बंध भी तो!

रुक नहीं पाता कोई...
मृत हो रहा अपना!
रुक नहीं पाता वो,
सुन्दर सत्य या सपना!
रुक नहीं पाती,
ये पकती मौसमों में देह!
रुक नहीं पाता,
किसी का क्षीण होता नेह!

संघर्ष से भी सींचकर हम
थामना चाहें अगर कुछ 
…थम नहीं पाता कभी!

मुट्ठियों में भींचकर हम,
रोकना चाहें अगर कुछ,
....रुक नहीं पाता कभी!












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