हे मृत्यु!
हे मृत्यु!
हे प्रिये!
तुम बुला रही हो न?
दूर खड़ी अदृश्य क्षितिज से,
तुम आवाज़ लगा रही हो न!
तुमसे ये क्षणिक मिलन,
ज्ञान सारगर्भित है,
सन्नाटों में छिपा हुआ,
शोर तुम्हारा निश्चित है,
तुमसे बहतर कौन प्रियसी,
संभव है मुझको मिलना!
जो करती है मेरी प्रतीक्षा,
साँसों की हर सीमा के परे,
जीवन के किसी पड़ाव पर,
घड़ी के किसी कांटे पर!
अभी भौतिक जीवन है,
तुमसे मिलकर हो जाऊँगा,
केवल तुम्हारा...’एक दिन’!
'उदय'
आओ मिलें चैन से
ReplyDeleteकिंतु पहले
छाप छोड़ आओ
अपने नाम की.....
Bahut badia