उदय

 अगर तुम मुझे, 

छोड़ दोगे, 

नीरव अंधेरी गुफाओं के भीतर, 

मरने के लिए, 

और तोड़ दोगे, 

मेरे शरीर की हर एक पसली, 

तो मैं उस अंधेरे और सन्नाटे के बीच, 

अपने शरीर से बहते रक्त को, 

रोक अपने हाथों से, 

खड़ा होऊँगा फिर एक बार, 

और ढूँढने निकलूंगा, 

प्रभात की एक किरण, 

और अगर लगे, 

कि असंभव है, 

मिलने इस कालिमा में, 

रोशनी के टुकड़े, 

तो उसी क्षण जला कर स्वयं को, 

कर दूंगा तिरोहित, 

जैसे यज्ञ में मिलती हो आहुति, 

जैसे आग में जलते हों पतंगें, 

और जैसे, 

ब्रह्मांड की कालिमा में, 

प्रतिक्षण जलकर होता हो सूर्य का

'उदय'




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