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Showing posts from September, 2020

मौन

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जंगल तेरा, शासन तेरा, मौन हमारा, भाषण तेरा! तुझको बोलो, ये हैं रोते, तेरे मिट्ठू, तेरे तोते! तुझसे ऊंचा? कट गई पाँखे! आप पे नज़रें? फोड़ दी आँखें! आवाज़ें? तेरी निगरानी! सबके आँसू, तेरा पानी!            - उदय

पत्र

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जो मेरे इस मौन पर भी, शोर अपना कर रहे हैं! फिर अहम के पर्वतों से, खोल खुद के पर रहे हैं! आज फिर कह दो उन्हें मैं एक कहानी गढ़ रहा हूं! सुनसान दर्रों का पथिक हूं पर्वतों को चढ़ रहा हूं! नेह के संबंध जो कल तक मेरे थे... देखता हूं दूसरों की ओर जाते! उगते सूरज में निहित सम्मान है जो, खोखली करता है विश्वासों की बातें! दूर वैभव पर टिके हर प्रेम से अब, जो मेरा संघर्ष, असफलता समझता! दूर झूठों पर टिके हर नेह से अब, प्रिय मुझे जिसकी थी वो झूठी सरलता! हूं अकेला और प्रतिद्वंदी स्वयं का, बिन थमे हर रोज़ आगे बढ़ रहा हूं! .....सुनसान दर्रों का पथिक हूं पर्वतों को चढ़ रहा हूं! - उदय

Badaraa khoye

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  Badaraa khoye                 -Kanha Joshi 'Uday' Gagan ghan ghor baajat phire, jag pyaasa hai kaise tare! Badaraa ko udaati pawan, Takate hain ye chaatak nayan! Apalak dekhte hain gagan,  ...... Kaise ek moti gire!!! Gagan ghan ghor baajat phire, Ye jag pyaasa hai kaise tare!

घर

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घर      - कान्हा जोशी 'उदय' शोर को लोरी समझकर, ख़्वाब जब से सो गया है, इस शहर के बीच उसका, घर कहीं गुम हो गया है! उससे ज़माने ने कहा, अपना नजरिया छोड़ दे, हां वो अंधा तो नहीं है, उसका चश्मा खो गया है! इस शहर के बीच उसका, घर कहीं गुम हो गया है!